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मंगलवार, 30 नवंबर 2010

श्रेष्ठ छात्रो के जीवन में ,आती अनेक बाधाए ,
उनको पार करने में, आती अनेक आपदाए,
अरे आपदाओं से पिंड छुड़ाया ,तो आई अनेक धनिकाए ,
ये धनिकाए करती ,श्रेष्ठ चरित्र को बर्बाद ,
जो फंस जाए इनके चंगुल में ,हो नहीं सकता आबाद................
शीर्षक सुझाये ?

kartavy se safalta

मेरे मित्रो मेरी बात को रखकर मन में ,सफल यदि होना है तुमको निज जीवन में , दुनिया में रहकर जो कर्तव्य अपना निभाते है,अवश्य ही वे लक्ष्य  प्राप्त कर लेते है,
इस बहुमूल्य जीवन को जो नष्ट करेगा,वह रहेगा पछताता जीवन-भर कष्ट भरेगा,
छोटी सी जिन्दगी में जो शुभ-कर्म कर जाते है,मरने पर उनका नाम लोग गाते है,
निज जीवन में तुमको करने है ऐसे काम,जिससे देश तुम्हारा बने महान ,
भविष्य देश का तुम पर है निर्भर,महान बनो दो देश को स्वयम भी मिटकर....








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शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

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बच्चो खेलो कूदो खूब हंसो ,
कभी बुरी संगति में न फंसो ,
यदि कोई कोशिश करे फ़साने की ,
आप कोशिश करो निकल आने की ,
यदि इससे भी न कम चले ,
फिर आप न बने भले ,
करे अत्याचारी का ऐसा पर्दाफाश,
पता लग जाए आस पास,
ऐसा संगठन करो तैयार ,
जो अत्याचारी को पिलाए मार ,
मिल सब करो देश का उद्धार ,
यही है सबसे बड़ा उपकार ...............................
                                    भावना पंवार

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

aadhunik svatantrta

देश एक खेत है ,आप भी चरिए,
सभी चर रहे है,मिलजुल कर प्रगति कर रहे है,
उन्ही का तंत्र है. वही स्वतंत्र है ,
 उन नेताओ का क्या?जो छंटे हुए स्वतंत्र है,
स्वतन्त्र लोगो ने उन्हें,अपने बीच से छांटकर जो भेजा है,
जाओ तुम्हारे अन्दर कुछ ज्यादा ही स्वतंत्रता है,
जाकर विधान सभा में अपनी स्वतंत्रता का जोहर दिख़ाओ,
जब वे माइक को अस्त्र,जूते को शस्त्र बनाते है,
तब वे साक्षात् स्वतंत्र नजर आते है,
 

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

anaitikta ka fal

जैसे ही मैं सवेरे उठा ,एक सज्जन को पिटते हुए देखा ,
उम्र भी लगभग पचास वर्ष रही होगी ,
हम भी पहुँच गए धीरे- धीरे चलकर ,
हमने पूछा आँख मलकर ,
क्यों भाई कौन है ये ,क्या अपराध है इसका ,
एक दर्शक बोले ,अपराध तो कोई खास नहीं इसका ,
क्या कहें कहते भी शर्म आती है ,
हम कुछ समझे कुछ नहीं ,
हमने अधिक जानने की कोशिश नहीं की ,
दूसरी और ,जो सज्जन पिटाई किए जा रहे थे ,
पिटाई करते हुए कहे जा रहे थे ,क्यों साले दूसरे की बहनों को छेड़ता है, ,           गलियों में चलती औरतों को ताकता है ,
          दूसरो के घरो में झांकता है ,  
         इसी कहा -कहीके बीच,
एक के बाद एक चप्पल, सज्जन के सिर पर पड़े जा रहे थे ,
दर्द के मरे सज्जन कराह रहे थे ,
इससे अगला सीन हमसे देखा न गया ,
क्योंकि ..सज्जन को एक महापुरुष घसीटने लगा ,.....................

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

mamta ki bheekh

बिल्ली का बच्चा बैठा छत पर ,म्याऊँ म्याऊँ  करता ,
देख-देख इन्सान को वह ,अपनी भूख को प्रकट करता ,
कोई न सुनता उसकी, सब अपनी-अपनी कहते ,
आखिर चोरो तरफ देख,बच्चा जोर-जोर से चिल्लाने लगा ,
वह रो-रो कर ,अपनी माँ को आवाज  लगा ,
लेकिन कुमाता का, कहीं पता नहीं था ,
वह रोया चिल्लाया लेकिन ,उसके पास कोई नहीं आया ,
बच्चा निःसहाय होकर गिर पड़ा ,बच्चे को पड़ा देख ,
एक के बाद एक असमाजिक तत्व आने लगे ,
बच्चे को घायल कर तडफाने लगे ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;----
                                      आजाद सिंह पंवार 
                             





                                      

रविवार, 26 सितंबर 2010

sampedayik dange

न कोई मौसम न समय न वजह ,
इन दंगो का होना आम हो गया जगह जगह ,
धार्मिक स्थलों के पास हड्डी के टुकडो का मिलना ,
या नमाज के ऐन वक्त पर जय बजरंगदल कह उठना,
कुछ स्वार्थी और साम्प्रदायिक लोगो की वजह से ,
लाखो गरीब नासमझ और मासूम लोगो का मरना ,
जिनके मॉल और जान  की बातें मामूली बनकर रह जाती ,
लेकिन इन बददिमागी धतूरे की फसल को तब भी शर्म नहीं आती,
इस साम्प्रदायिक आग को हवा दे रहा कौन ,
सरकार भी इस प्रशन पर रहती है मौन ,
इन सवालों का हाल देश के उस आदमी के पास है ,                              जो न कांग्रेश और  न ही बी.जे.पी.के साथ है ,
जिसको अपना धर्म ईमान बच्चे प्यारे प्यारे  माँ और बाप,
वह इन बददिमागी हैवानो की करामातो को कैसे करे माफ़ ,
वही वाशिंदा गुजरात का वही मथुरा अयोध्या काशी  का ,
और वही मरकाना पाली उदयपुर में रहता है ,
जिन बातोंका कोई आधार नहीं ,
उन्हें दोहराते रहने से देश का हित नहीं अहित होता है ;;;;;;;;;;;; 
                                     आजाद सिंह पंवार

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

suhavne mousam ki sair

s शाम के लगभग सात बजे होंगे ,मौसम बड़ा सुहावना था .उसी समय चार दोस्त टहलने निकले ,वे आपस में बातें करते आगे बढ़े ही थे ,तभी उन्हें एक सुन्दर लडकी दिखाई दी .उसे देखकर उनमें से एक ने कहा -
       आए-हाय !जानेमन कैसी हो ,
       लडकी संकुचाकर आगे बढ़ी ही थी ,
       दूसरे ने आवाज लगाई ,
      ओय होय मेरी जान दिल तोड़कर  कहाँ चली ,
लडकी ने इस पर भी कोई जबाब नहीं दिया ,
तब तीसरा उछलता हुआ उसके पास पहुचा ,
और बोला भाभी जी जरा इधर तो आइये ,
इस पर लडकी को गुस्सा आ गया ,
उसने पैर में से चप्पल निकालकर,
उसके सर पर पटकनी शुरू की ,
यह देख उसके साथी भाग खड़े हुए ,
             उनको भागते हुए देख लडकी ने कहा,                                 आ जरा तुम्हारा  भी दिल जोड़ दूं !!!!!!!!!!

बुधवार, 15 सितंबर 2010

divangi

लडकी के चक्कर में पड़कर,
अपने ही दोस्तों से लड़कर ,
एम्.ए.तक पढ़कर ,
किया अपने को बर्बाद ,
                     यारो चले थे घर से लड़कर ,
                     आये कंडक्टर से लड़कर ,
                     किसी अंधे से भिड़कर ,
                     अंधे की उपाधि लेकर ,
                     आये थे कालेज ,
आते ही कालेज बन गये शेर ,
शरीफ लडके लडकियों को सताना या ,
इससे भी बढ़कर हरकत करना ही था जीवन लक्ष्य ,
किसी लडकी को लेकर एक दिन हुआ हंगामा भारी ,
कोई चाकू कोई छुरी तो कोई ले आया बारी,
एक ने दूसरे को चाकू छुरी मारी ,
हुए हाल बेहाल ,
                                              यारो खून से वस्त्र हुए सारे लाल ,
                                                                                 
                                              लडकियाँ खड़ी मुस्करा रही थी ,
                                              अक्ल के दुश्मनों  को ,
                                              तब भी शर्म नहीं आ रही थी ;;;;;;
 

सोमवार, 13 सितंबर 2010

dahej

आज दहेज़ प्रथा एक अभिशाप बन चुकी है इस युग मै लडके के माता पिता लडके की अच्छी कीमत मांगते है .यदि उन्हें उनकी सोच से कम कीमत मिलती है तो बहू को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है .चाहे बहू कितनी भी सुंदर और गुणवान क्यों न हो .बात -बात पर उसे व उसके माता पिता को अपमानित किया जाता है .यह क्यों होता है .मुख्य रूप से इसका कारण हमारी मानसिकता है क्योंकि हम चाहते है की हमारी लडकी की शादी हमसे ऊचें घराने में हो.हमें अपनी सोच बदलनी होगी .हमें अच्छा घर नही अच्छा वर देखकर शादी करनी होगी .तभी इस कुप्रथा से छुटकारा मिल सकेगा ;

शनिवार, 11 सितंबर 2010

adarsh chhatra

aछात्र को कौए के समान चेष्टाशील ,बगुले के समान ध्यानरत ,कुत्ते के समान कम सोने वाला ,कम खाने वाला तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए घर का त्याग करने वाला होना चाहिए .छात्र को अनुशासित, आज्ञाकारी ,परिश्रमी तथा विन्रम  होना चाहिए एवं सादगी का जीवन बिताना चाहिए .जो छात्र  इसके विपरीत आचरण करते है ,वे कम ही सफल होते है .

सोमवार, 23 अगस्त 2010

raksha

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहिनका त्यौहार है ,इस पर्व पर बहिन भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है ,भाई बहिन की रक्षा का वचन देते है ,इस त्यौहार  का उद्देश्य भाई बहिन के प्यार में नवीनता लाना है ,जिससे भाई बहिन का सदैव बना रहे ;

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

bacche

बच्चे रोते है क्यों,बच्चे हंसते है क्यों
क्योकि वे अभी अंजान है,मानव की न उन्हें पहचान है,
जैसे ही वे मानव को लेंगे पहचान,जाग उठेगा उनमे स्वाभिमान ,
नखरे दिखाएगे अनेक,कम नहीं करेगे नेक,  
यदि घरवाले डांटेंगे,उनकी बातो को काटेंगे,
भेजते है कालेजो में,मिलते है सिनेमाघरों में या कही और,
फुर्सत मिलने पर जाते है कॉलेज में,
कहते है सर प्रजेंट  मैं कुछ तो कर देते है प्रजेंट और कुछ कर देते है अब्सेंट,
फिर क्यां गुरूजी को रोब दिखाना,
कहते है गुरूजी कॉलेज से बाहर आना,
गुरूजी ने भी ऐसी चाल  चलाई,धूर्त बच्चे की एक भी प्रजेंट नहीं लगाई,
फिर क्यां रह गया परीक्षा से वंचित,हुआ बहुत चिंतित,
घबराया,अब तो मार पड़ेगी
(मन ही मन सोचता है ) और तो बसका नहीं 
आत्महत्या करनी पड़ेगी;
                     आजाद सिंह पंवार 

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

Sadachar


सदाचार का अर्थ है,सच्चा व अच्छा आचरण;सद्गुणों से परिपूर्ण व्यक्ति ही सदाचारी बन पता है;ये सद्गुण है-दया,क्षमा,प्रेम,करुना,त्याग आदि ;मनुष्य की शोभा उसके पहने हुए वस्त्र और आभुस्नो से अधिक उसके व्यवहार से होती है;सदाचार का पालन करने वाले को यश और आदर तो मिलता ही है साथ ही उसे मानसिक शांति भी मिलती है;हमें सदाचार में आस्था रखनी चाहिए;सुख अन्यत्र कही नहीं है;शांतिपूर्ण जीवन में प्रेम का फूल खिलाना ही सच्चा सुख है,जिसकी जड़ सदाचार की पृष्ठभूमि में छिपी है;

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

SANYAM

संयम सफलता का मूलाधार है,संयमी व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है,खान-पान में संयम रखने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ रहता है,वाणी पर संयम रखने वाले व्यक्ति के साथ समाज में कभी वाद-विवाद नहीं होता है,जो व्यक्ति अपनी सभी इंद्रियों को संयम में रखता है,वह सदैव सुख व समृद्धि प्राप्त करते है;