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रविवार, 15 दिसंबर 2013

bhagya aur karam

भाग्य कर्म का मर्म समझना दुर्गम अति असंभव !
देह्जनित अभिमान तजे जो उसको होता अनुभव!!
भाग्य समझ लो अंतरात्मा ,देह कर्म का घर है!
निश्छल ईश्वर भाग्य समझ लो ,जगत कर्म निर्भर है !!
भाग्य बनी है लाईन,कर्म की चलती उस पर गाड़ी !
भाग्य रूप धागों से मिलकर जैसे बनती साड़ी!!
माता -पिता हैं भाग्य ,कर्म के बनते पुत्र और पुत्री !
संत सरे कह गए जगत में  खोल हरदय की सूत्री !!

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

"लड़की का चक्कर"

लड़की के चक्कर में पड़कर ,
अपने ही दोस्तों से लड़कर ,
M.A. तक पढ़कर ,
किया अपने को बर्बाद,

यारो चले थे घर से झगड़कर,
आये थे कंडक्टर से लड़कर,
किसी अंधे से भिड़कर,
अंधे की चोली पहनकर,
आये थे कॉलेज,

आते ही कॉलेज में बन गए शेर,
किसी शरीफ लड़के-लड़की को परेशान करना,
या इससे भी बढ़कर हरकत करना,
ही था जीवन लक्ष्य,

किसी लड़की को लेकर,
हुआ एक दिन हंगामा भारी,
कोई चाकू कोई छुरी,
तो कोई ले आया बारी

एक ने दुसरे को चाक़ू छुरी मारी,
हुए हाल बेहाल,
यारो खून से वस्त्र हुए सारे लाल,
लड़कियाँ खड़ी मुस्करा रही थी,

अकल के दुश्मनों को,
 तब भी शर्म नहीं आ रही थी!!