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सोमवार, 10 जनवरी 2011

dahej

जले जहां मासूम जवानी ,हर घर वे शमशान हैं .दहेज़ की खातिर होता जिस घर मैं नारी अपमान है .
निर्धन की बेटी को मिलता ,जीने का अधिकार नहीं .न्याय के ठेकेदारों बोलो क्या यह अत्याचार नहीं .
स्टोव फटा बिजली ने पकड़ा ,क्या यह झूठा प्रचार नहीं .जहर खा लिया फांसी ले ली जब भी बसाई पार नहीं .
पड़ी सड़क पर सडती लाशें ,न होती पहचान है .जले जहां मासूम जवानी , हर घर वे शमशान हैं.
नई नवेली दुल्हन आई ,जीवन का बीमा करवाया .आग लगा दी घर के अन्दर ,ज़िंदा गया  बहु को जलाया .
घोर यातना सहे बहु ,और दुनिया को बीमार बताये .नर्म बदन पर गर्म सलाखे ,कम दहेज़ की मिली सजाये .
मजहब के ठेकेदारों बोलो ,क्यों हुई बंद जबान है .दहेज़ के पिस्सू क्या जाने ,नारी कितनी महान है .
दया- धर्म के सौदागर, कहलाते खुद को दानी .छान-छान कर पानी पीने वाले पी जाते लहू इंसानी .
उजड़े लाखो आज घराने ,उनकी है सब मेहरबानी ......???

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