भाग्य कर्म का मर्म समझना दुर्गम अति असंभव !
देह्जनित अभिमान तजे जो उसको होता अनुभव!!
भाग्य समझ लो अंतरात्मा ,देह कर्म का घर है!
निश्छल ईश्वर भाग्य समझ लो ,जगत कर्म निर्भर है !!
भाग्य बनी है लाईन,कर्म की चलती उस पर गाड़ी !
भाग्य रूप धागों से मिलकर जैसे बनती साड़ी!!
माता -पिता हैं भाग्य ,कर्म के बनते पुत्र और पुत्री !
संत सरे कह गए जगत में खोल हरदय की सूत्री !!
देह्जनित अभिमान तजे जो उसको होता अनुभव!!
भाग्य समझ लो अंतरात्मा ,देह कर्म का घर है!
निश्छल ईश्वर भाग्य समझ लो ,जगत कर्म निर्भर है !!
भाग्य बनी है लाईन,कर्म की चलती उस पर गाड़ी !
भाग्य रूप धागों से मिलकर जैसे बनती साड़ी!!
माता -पिता हैं भाग्य ,कर्म के बनते पुत्र और पुत्री !
संत सरे कह गए जगत में खोल हरदय की सूत्री !!